श्री दयालु गुफा दर्शन

यह गुफा "रामगिरी" पर स्थित है।  विक्रम संवत १८३५ से १८४० के मध्य गुरु दीक्षा ले श्री दयाल दास जी महाराज ने इसी गुफा की जगह खुले स्थान पर बैठकर भजन साधन चालू कर दिया। राम जी महाराज ने उनकी तितिक्षा में साधना से प्रसन्न हो एक बड़ी भारी चट्टान उनके ऊपर इस तरह रख दी कि- " वह भजन का खुला स्थान वर्षासर्दीधूप आदि से बचाव करने में सक्षम एक गुफा के रूप में बदल गया।" यहीं पर श्री दयाल दास जी महाराज की तपस्या से घबराए इंद्र द्वारा प्रेषित अप्सरा "रंभा" आई थी। श्री दयाल दास जी महाराज को लुभाने हेतु उसने समस्त पर्वत क्षेत्र को नंदनवन समान रमणीक बना दियाअनेक स्वाद वाले फल और मिष्ठान भेंट किएनृत्य गान कियातथा मधुर संभाषण कियाकिंतु श्री दयाल दास जी महाराज सर्वथा अडिग रहे।  आंख खोलकर भी उस अप्सरा को नहीं देखा।  तब हताश हुई अप्सरा उन्हें अंधे हो जाने का श्राप देकर चली गई। श्राप हटाने में समर्थ होने पर भी श्री दयाल दास जी महाराज ने देव मर्यादा रक्षणार्थ वह श्राप स्वीकार कर लिया।  नेत्र ज्योति चली गई तत्पश्चात गुरु आज्ञा पाकर श्री दयाल दास जी महाराज ने राम महाराज से प्रार्थना की।  अंत में करुणा सागर ग्रंथ से की गई प्रार्थना को स्वीकार कर राम महाराज ने उन्हें ज्यों की त्यों नेत्र ज्योति प्रदान कर दी। 

यह दयालु गुफा आज भी अपने उसी प्राकृतिक रूप में विद्यमान है।  यहां पर की गई मनौती के फल स्वरुप आज भी अनेक भक्तों के विभिन्न मनोरथ सफल होते हैं।  दिव्य क्षेत्र में श्री दयालु दास जी महाराज के भजन का प्रताप कण-कण में विद्यमान है।  


Subscribe For News Letter