गुरुवर्य श्री राम दास जी महाराज की आज्ञा अनुसार श्री दयाल दास जी महाराज हजूर क्षेत्र (महिला वर्ग का निवास क्षेत्र) स्थित इस साल कक्ष में विराजते थॆ इसलिए यह कक्ष उनका निजी आवास स्थल रहा है। पहाड़ी पर स्थित गुफा में भजन साधन करते समय विघ्न करने आई देवांगना के लगे श्राप से श्री दयाल दास जी महाराज के नेत्रों में लगभग 6 माह तक असहनीय वेदना छाई रही व नेत्र ज्योति चली गई। दुविधा को दूर करने के लिए गुरु आज्ञा अनुसार श्री दयाल दास जी महाराज ने इसी कक्ष में एक और बनी गुफा में बैठकर करुणा बोध, करुणा प्रश्नोत्तरी, अरदास बत्तीसी व करुणासागर जैसे परम करुणा भरे ग्रंथों से भगवत प्रार्थना की थी। इससे छह माह तक निस्तेज हुए उनके नेत्रों में पुनः ज्योति आ गई व नेत्र पूर्णतया निरोग व निर्मल हो गए थे। एक दिन यहीं पर भजन साधन करते समय श्री दयाल दास जी महाराज के हाथों की माला टूट गई थी। ठीक उसी समय अप्सरा को भेजकर भजन में विघ्न करने जैसे अपने कुकृत्य से लज्जित हुआ इंद्र श्री दयाल दास जी महाराज का दर्शन करने वहां आया। उसने क्षमा याचना की और वह टूटी माला अपने हाथों से नए धागे में पिरो कर महाराज श्री के हाथों में थमा दी। फिर वह " मुझे मेरे लायक कोई सेवा करने का अवसर देवें" की प्रार्थना करके यथा स्थान चला गया। तत्पश्चात यहां पर स्वयं इंद्र के आने के कारण इस कक्ष को " इंद्रसाल" कहा जाने लगा। इंद्र के हाथों से पिरोई गई दयाल दास जी महाराज की वह माला अब भी निज मंदिर के पास में स्थापित श्री दयाल दास जी महाराज की सुंझ में दर्शनार्थ विद्यमान है।