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श्री श्री १००८ श्री पूरण दास जी महाराज (तृतीय आचार्य )

विक्रम सम्वत १८२५ to विक्रम सम्वत १८९२





- वि.सं.  १२. चैत्र कृष्ण  २ के दिन मध्यप्रदेश के ग्राम मेलकी में आपका जन्म हुआ।  सामाजी व जसवंतजी (वैश्य) आपके माता पिता थे।  रतलाम के संत श्री  पीथोदासजी ने उन्हें समर्पित इस बालक को वि.सं.  १३ की फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन गुरुधाम खेड़ापा में श्री दयालुदासजी महाराज के समर्पित कर दीक्षित करा दिया।  आपने भी योग्य गुरु के सानिध्य में रहकर अनेक सद्गुणों को अर्जित कर लिया था।  आप एक सुयोग्य साहित्यकार व लेखक थे।  श्री दयालुदासजी म० द्वारा सृजित की हुई  अनेक रचनाओं को आपने ही लिपिबद्ध किया था।  आपका विशेष समय गुरु महाराज की सेवा में ही व्यतीत हुआ था।  आपकी साधना अद्भुत थी।  

आप श्री दयालुदासजी महाराज के परमधाम पधारने  के बाद होलिकोत्सव (फा०  शु० १५) विक्रम सम्वत १८८५  के दिन आचार्य पीठासीन हुए।  आप बहुत कम समय तक (सिर्फ ७ वर्ष) आचार्य पद से सम्प्रदाय की सेवा करते हुए कार्तिक शु०  ५ वि.सं.  १८९२ के दिन परमधाम पधार गए।  आपने भी अपने अनुभवों को वाणी के रूप में प्रस्तुत किया है।  जो कि लगभग १५०० श्लोक मैथ्या परिमित है।  आपकी कुछ रचनाये व छन्द तो कई प्रकार की विचित्रता रखने वाले हैं।  उदाहरण के रूप में रामधाम प्रकाशन के अंतर्गत कई भागो में प्राप्त कर सकेंगे।


 नमस्कार हरि गुरु जनाँ , आदि अन्त मध ताम ।
तिन ही कूँ  नित करत है , पूरणदास प्रणाम ।।



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