आपका जन्म वि.सं. १९४० में तेजरासर नामक ग्राम में एक कृषक परिवार में हुआ। बाल्यकाल से ही आप के हृदय में शास्त्राध्ययन की विशेष रूचि थी। इसलिए आप घर से विरक्ति धारण कर अमृतसर (पंजाब) के ब्रह्मबूटा स्थान पर चले गए। यहाँ पर काफी समय तक विद्योपार्जन किया गया। फिर आगे प्रस्थान कर आप हरिद्वार, काशी आदि पावन तीर्थो में विशेष ज्ञानार्जन करते हुए पुनः राजस्थान में लौट आए। सन्यासियों के पास रहने से आपका नाम उस समय केशवानन्दजी था।
आपने लाडणू में खेड़ापा के सन्त कृष्णन्दजी से दीक्षा ग्रहण की। अब आप का नाम केवलराम रखा गया। एक समय वि.सं. १९७७ के होलिकोत्सव पर गुरुधाम के दर्शनार्थ आए उन्हें यहाँ के स्थानीय सन्तों ने देखा व आप की विद्वता व योग्यता से प्रभावित हो उन्हें यही रखने का विचार किया। सन्तों के अनुरोध से सन्त कृष्णानंदजी ने श्री केवलरामजी को श्री लालदासजी महाराज के समर्पित कर दिया। गुरु महाराज के परमधाम पधारने के बाद वि.सं. १९८२ भा.शु. ४ के दिन आप आचार्य पीठासीन हुए। आप षड्दर्शनो के विस्तृत मर्मज्ञ थे। भागवत के तो आप प्रकाण्ड विद्वान थे। इस कारण तत्कालीन कई विद्वान लोग आपके सामने शास्त्रार्थ में निरुत्तर हो नतमस्तक हो जाते थे। इतना होने पर भी आपका ज्यादातर समय नाम जप करने में व कराने में ही बीतता था। आपने अपनी अनेक विशिष्ठ सेवाओं से स्थान व सम्प्रदाय को गहरा उत्थान प्रदान किया। आप पोष शु. ३ वि.सं. २००६ के दिन ब्रह्मलीन हो गए।