भारतवर्ष की पावन धरा पर सदैव से ही दिव्य महापुरुषों का प्राकट्य होता रहा है। समय - समय पर अवतरित अनेकों महापुरुष अपने तप - त्याग व वैराग्य से इस धराधाम को गोरवान्वित करते आए हैं। इन दिव्य विभूतियों ने अपनी कथनी व करनी से पग - पग पर समाज को सुशिक्षा एवम् मार्गदर्शन किया है। इसी परम्परा में भारत भूमि के मारवाड़ क्षेत्र में ऐसे एक दिव्य महापुरुष का प्रादुर्भाव हुआ; जिनके जीवन दर्शन सम्पूर्ण सौगुणों को समाविष्ट करने वाले रामस्नेही सम्प्रदाययाचार्य पीठ रामधाम खड़ापा के वर्तमान पीठाचार्य स्वनामधन्य अनन्त श्री विभूचित, परमपूज्य, प्रातः स्मरणीय, सन्ध्या वन्दनीय, भगवद स्वरूप श्री श्री १००८ श्री पुरुषोत्तमदास महाराज है। आपश्री का प्रादुर्भाव भारतवर्ष के गोरवस्थल वीरभूमि राजस्थान के मारवाड़ जोधपुर जिले के भोपालगढ़ कस्बे के पास स्थित बागोरिया ग्राम के साधारण कृषक परिवार में वि.सं. १६६६ की मिती श्रावण शुक्ला ५ (पंचमी) को हुआ। आपश्री के पिता का नाम श्री मानारामजी भाटी एवम माता का नाम गट्टू देवी था। आपश्री के माता-पिता ने आपको बाल्यकाल में ही वि.सं. २००३ को मिति जयंती शुक्ला १२ (द्वादशी) के दिन रामस्नेही सम्प्रदाय खेड़ापा के तत्कालीन आचार्य श्री श्री १००८ श्री केवलरामजी महाराज के पावन श्री चरणों में समर्पित कर दिया। बाल्यावस्था होने के कारण सहज में ही आपके ऊपर आचार्य श्री व अन्य सन्तों का विशेष वात्सल्यमय प्रेम और आर्शीवाद रहा है। लगभग छह: वर्षोपरान्त आचार्यश्री केवलरामजी महाराज की आज्ञा से वि.सं. २००५ की मिती जयंती कृष्णा ६ (नवमी) के दिन पूज्य श्री हरिदासजी महाराज (जो कि उस समय रामस्नेही आचार्यपीठ खेड़ापा के उत्तराधिकारी थे) ने कहा कि सार्वजनिक रूप से सार्वजनिक रूप से गुरुउपदेश देकर सन्त परम्परा में दीक्षा प्रदान की। आपश्री के पूज्य गुरुदेव एवम रामस्नेही सम्प्रदाय खेड़ापा के अष्टम आचार्य श्री श्री १०० श्री श्री हरिदासजी महाराज सम्पूर्ण भारतवर्ष के तत्कालीन विद्वानों में अग्रगण्य थे, जिनके विद्वता का लाभ आपको आप श्री को भी प्राप्त हुआ। आप श्री का प्रारम्भिक अध्ययन श्री गुरुमहाराज के पावन सानिध्य में ही हुआ। आप बाल्यकाल से ही सरल स्वभाव व सेवापरायण थे। "गुरु शुश्रुशं विद्या" इसी प्रकार के रूप में आप श्री गुरु महाराज एवम गुरुधाम की सेवा के साथ 'विद्या अध्ययन करते थे। परिणामस्वरूप आपश्री पर माँ शारदा की असीम अनुकम्पा रही। जिस प्रकार स्वर्ण अनेक कसोटियों से गुजरकर परिमाणित व परिशोधित होता है, ठीक उसी प्रकार से महापुरुषों का जीवन भी कई कठिनाइयों से गुजरकर श्रेष्ठ बनता है। यह बात आपश्री के जीवनदर्शन से भी ज्ञात होती है। आपश्री का विद्या अध्ययन चल रहा था। उसी के बीच आपके पूज्य गुरुवर रामधाम खेड़ापा के तत्कालीक आचार्य श्री श्री १००८ श्री हरिदासजी महाराज अल्पायु में ही वि.सं. २०२२ की मिति फाल्गुन शुक्ला (अष्टमी) के दिन अपने पंच - भौतिक कलेवर का त्याग करके परमधाम पधार गए। इस आकस्मिक विवरण के रूप में रामधाम खेड़ापा की सम्पूर्ण जिम्मेदारियों का बोझ आपश्री के कन्धों पर आ गया। वि.सं. २०२२ की मिति चैत्र कृष्णा १० (दशमी) के दिन रामस्नेही सम्प्रदाय की परम्परा के रूप में सन्त समुदाय की सम्मति व भक्तों की भावनाओं के अनुरूप आपश्री को रामस्नेही सम्प्रदायचार्य पीठ रामधाम खेड़ापा के नवम् आचार्य के रूप में गादी पर विराजमान किया गया। आपश्री ने समय - समय पर सन्त मण्डली के साथ भारतवर्ष के विभिन्न द्वीपों की अनेकों यात्राएँ करके सनातन धर्म, रामस्नेही मत व रामायण का खूब प्रचार - प्रसार किया एवम् अपने दर्शन, सेवा व सत्संग - प्रवचन से दर्शनाभिलाषी जिज्ञासु जनों को कृतार्थ किया। ये आंकड़े में अनुमानित १६६७ की रामनाम प्रचार यात्रा जिसमें राजस्थान के विभिन्न जिलों के साथ - साथ मध्यप्रदेश, गुजरात व महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों के उन क्षेत्रों, शहरों व गांव - कस्बों की यात्रा की गई; जहाँ पर रामस्नेही सम्प्रदाय खेड़ापा के आदि आचार्य श्री श्री १००८ श्री रामदासजी महाराज, द्वितीय आचार्य श्री श्री १००८ श्री दयालदासजी महाराज और अन्य पूज्य पूर्वाचार्यो का पदभारुण हुआ था। इसी तरह आपश्री ने अखिल भारतीय तीर्थयात्रा यात्रा आयोजित की’; जिसमें भारत वर्ष के सभी धार्मिक - पौराणिक तीर्थो की यात्रा कर, वहाँ का जल, रेणुका (मिट्टी) पाशणखण्ड व अन्य स्मृतिचिन्दों का संकलन किया गया एवम् उन्हें रामधाम खेड़ापा में लाकर साधक स्थापित किया गया है। भारतवर्ष के अतिरिक्त आपश्री ने सन्त व भक्त वृन्द को साथ लेकर हाँगकाँग, मणिक, चाईना, सेनजेन, एवम् थाईलैण्ड, सिंगापुर, नेपाल आदि देशों की यात्राओं द्वारा सनातन धर्म व रामनाम का प्रचार - प्रसार किया। विदेश यात्रा के तहत स्टार द्वीप, अथाह व अपार सागर की उत्ताल लहरों पर रात्रि के शान्त वातावरण में करुणासागर के सामूहिक पाठ की स्वर लहरियों की गूंज सामग्री व मनोरंजन स्मृति जो मानस गीत पर आज भी विद्यमान है। आपश्री ने आचार्यपीठशीन होने के उपरान्त सम्प्रदाय व रामधाम के चहुँमुखी विकास कार्य को गति प्रदान की जो अनवरत रूप से आज तक गति है। गुरुचरणों के सपनध्य में स्वल्प शिक्षा प्राप्त करके भी गुरुकृपा से आप गीता, भागवत, रामायण के साथ - साथ कई शास्त्रों व पुराणों के भी ज्ञाता हैं, एवम इन गूढ़ रहस्य को जानने हैं। आप श्रीमद्भागवत कथा का वाचन अतिभावपूर्ण रूप से बिना किसी हिंदी अर्थ के, मूल भागवत के आधार पर करते हैं। पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद एवम मां शारदा की कृपा से कई पूर्वाचार्यो की हस्तलिखित अनुभव वाणी का आपने गहन अध्ययन करके गूढ एवम् मार्मिक रहस्य का ज्ञानार्जन किया।आप श्री ने रामस्नेही सम्प्रदाय खेड़ापा के द्वितीय आचार्यश्री श्री १००८) श्री दयालदासजी महाराज की हस्तलिखित वाणी का विषयानुगत नामकरण कर सात अलग - अलग भागों में प्रकाशित करवाकर जनमानस के लिए सुलभ कर दिया; जो रामस्नेही सम्प्रदाय के साथ - साथ सम्पूर्ण सन्त - भक्त समाज और साहित्य जगत के लिए अमूल्य निधि है। आपश्री ने देश के कई प्रान्तों, शहरों, कस्बों, सुदूर देहात क्षेत्रों व ढाणियों में कथा, प्रवचन, सत्संग व चातुर्मास आदि के द्वारा सनातन धर्म व रामस्नेही मत का प्रचार - प्रसार किया एवम् कर रहे हैं। आपश्री अपने प्रवचनों व कथा में मुख्य तो हिंदी व राजस्थानी (मारवाड़ी) भाषा का प्रयोग करते हैं; इसके साथ ही आपको गुजराती, अंग्रेजी आदि अन्य भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त है। आपश्री के मुखारविन्द से चिह्न्रित उपदेश - आदेश व प्रवचनों से लाखों मुमुक्षु और जिज्ञासुजन आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर बढ़ते हुए आत्मशान्ति का अनुभव कर रहे हैं। आपश्री अपने शुभ सिन्ध्य व निर्देशन में रामधाम खेड़ापा में समय - समय पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करवाकर अनेक सम्प्रदाययाचार्यो, पीठाचार्यो, महतों और विद्वानों के समागम कर करकर मारवाड़ ही नहीं अपितु सुदूर से आने वाले भगवद्भक्तों को महापुरुषों के दर्शन, सेवा करने का संकल्प दिलाते हैं। आपश्री ने अपने आचार्यकाल में रामस्नेही सम्प्रदाय खेड़ापा के प्रणेता और संस्थापक आदि आचार्य श्री श्री १००८ श्री रामदासजी महाराज के निर्वाण के दो सौ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष - वि सं २०५५ में 'आदि आचार्य निर्वाण द्विशताब्दी महोत्सव "के अंतर्गत एक वर्ष में साथ' अखण्ड रामनाम जप यज्ञ 'का दिव्य आयोजन कर आसपास के सम्पूर्ण वातावरण को राममय बनाते हुए, रामस्नेही द्रोपदी, सम्पूर्ण सन्त समाज व आध्यात्मिक जगत को सुपर्णमिति स्मृति प्रदान की है। वि.सं. २० २२ की मिती चैत्र कृष्णा १० (दशमी) के दिन आपश्री को रामस्नेही समप्रदाययाचार्य पीठ रामधाम खेड़ापा के नवम् आचार्य के रूप में गतियों पर विराजित हुए ५० (पचास) वर्ष पूर्ण हुए। जिनके उपलक्ष में विशाल स्वर्ण जयंती अमृत महोत्सव नामक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। आपश्री के आचार्यपदासीन होने से लेकर वर्तमान तक सभी कुम्भ मेला महोत्सवों (नासिक के अतिरिक्त) में आपके शुभ संकल्प व सद्प्रेरणा से 'सीथल - खेड़ापा रामस्नेही अन्नक्षेत्रे आश्रम के द्वारा हजारों की संख्या में सन्त - महात्माओं, भक्तों, आगन्तुकों व जननारायण की सेवा कर रहे हैं। साथ - साथ दरिद्रनारायण भक्तजनों की अन्न - जल, वस्त्र, औषधी, पदत्राण, पत्र - पुष्प व अन्य माध्यमों से नियमित रूपेण सेवा की जाती आ रही है। साथ ही साथ वहाँ की पावन धरा पर रामनाम जप, अखण्ड ज्योति, गुरुवाणी पाठ, कथा, प्रवचन, सत्संग, रासलीला और अनेक पूज्य महापुरुषों के सादर पदार्पण व दर्शन आदि के द्वारा भक्तजनों को अधिकाधिक रूप से आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने का शिष्टाचार किया जा रहा है। नासिक कुम्भ पर्व चातुर्मास काल में आने के कारणवश वहाँ नियमित रूप से सीथल - खेड़ापा रामस्नेही अन्नक्षेत्र आश्रम का संचालन नहीं किया जाता है।