आप का प्राकट्य भाद्रपद शु० ७ वि.सं. १९६९ दिन के मध्यप्रदेश के एक गांव बाबई (जिला होशंगाबाद ) में हुआ था। आपके माता - पिता का नाम हरखूबाई व रामदीनजी था। बाल्यकाल से ही भक्ति भावना से प्रभावित हो आप की माताजी ने फा.शु. १५ वि.सं. १९८१ के दिन इस होनहार बालक को खेड़ापा में तत्कालीन आचार्य चरण श्री केवलराम महाराज के चरणों में समर्पित कर दिया गया।
अच्छे गुरु का पावन सानिध्य पा इस योग्य शिष्य ने कुछ ही वर्षों में कई शास्त्रों को हृदय कर अनुभव के साथ दर्शनायुर्वेददाचार्य, काव्यतीर्थ, भिषगृत्न , बी० ए० आदि कई उपाधियाँ प्राप्त कर ली। आपकी प्रतिभा बहूतोन्मुखी थी। आप निरन्तर चिकित्सा के द्वारा रोगियों की, ज्ञान सदुपदेश के द्वारा जिज्ञासुओं की, धन के द्वारा असहाय जनों की, विद्या के द्वारा महापुरुषों के वाणी - साहित्य व अन्य ग्रन्थों की, सन्नीत शिक्षण द्वारा / राष्ट्र व राष्ट्रीय अग्रणी की, शरीर के द्वारा स्थान व अशक्त लोगों की और मन के द्वारा सबका भला चाहते हुए सभी प्राणी मात्र की सहायता व सेवाएँ संलग्न रहती थे। माघ कृष्ण ४ वि.सं. २००६ के दिन आप आचार्य पद पर विराजमान हुए। यद्यपि आप आचार्य पद पर बहुत कम समय (सिर्फ १३ वर्ष) तक विराजमान रहे किंतु इस सीमित समय में आपने गुरुवाणी प्रकाशन, आयुर्वेद सेवा से असाध्य रोग निवारण, कुम्भ मेलों में अन्नक्षेत्र के द्वारा सहस्त्र - सहस्त्रांशों व दरिद्रनारायण की अन्न - जल वस्त्र से सेवा, रामनाम प्रचार, आदि जो जो सेवाएं की है वे अपने आप में एक अद्वितीय स्थान रखती है। आप सिर्फ ५२ वर्ष की अवस्था में वि.सं. २०२२ फाल्गुन शु० ८ के दिन ऐहिक लीला संवरण कर ब्रह्म मुहूर्त में ब्रह्मलीन हो गए।
आप की 'श्री गुरुसप्तकम् व स्तोत्र स्तवकम् "आदि कुछ संस्कृत रचनाएँ है। जो की आप ही के द्वारा लिखित व प्रकाशित"श्री आचार्य चरितामृत" नामक पुस्तक के प्रारम्भ में प्रकाशित है।