- वि.सं. १ कार्तिक शु १५ के दिन माता लक्ष्मी के उदर से खेड़ापा में आप का जन्म हुआ। माता के साथ आप बचपन से ही गुरु स्थान में निवास करते रहते हैं। लगभग दस वर्ष की अवस्था में उन्हें नाम साधन की दीक्षा देने के बाद आप के गुरु महाराज बहुत जल्दी परमधाम पधार गए। इस कारण आप छोटी अवस्था में ही १८६२ के मार्गशीर्ष मास में आचार्य पदासीन हो गए। यद्यपि आप अवस्था में छोटे थे किंतु आपके साधन निष्ठा, तेज व तपस्या अद्भुत थे। आपने जो कौशल के साथ सम्प्रदाय का व स्थान का संचालन किया वह एक अनुकरणीय दृष्टांत बन गया है। आप के समय स्थान की वृद्धि अद्वितीय रूप से हुई थी। सुदीर्घ काल तक इस पद पर बने रहकर आपने विभिन्न राज्यों के कई राजे महाराजाओं को और भक्तों को दुर्व्यसनों व दुराचारों से मुक्त कर भगवदुन्मुख किया।
साहित्य सृजन में भी आपकी अच्छी प्रतिभा थी। आपने श्री दयालुदासजी महाराज के चमत्कारी ग्रन्थ श्री करुणासागर पर छन्दोबद्धेक टीका लिखकर एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस प्रकार आप लगभग ५५ वर्ष तक आचार्य पद से जन समाज की सेवा करते हुए वि.सं. १६५० वै० कृ० ७ के दिन परमधाम पधार गए। आपके द्वारा विरचित सुन्दर काव्यमय वाणी भी काफी संख्या में है